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Wednesday, September 01, 2010

गीता सन्देश

तू मेरी नानी की बेटी,
कह माँ कह लेटी ही लेटी।

गीता के गीतों में क्या है?
गीतों मे क्या रह्स्य छुपा है?

सुन बेटी लेटी ही लेटी,
गीता के गीतों में - सृष्टि का मर्म छिपा है,
मनव का धर्म छिपा है।

ज्ञान से विज्ञान समझ कर,
ज्ञानियों से ज्ञान प्राप्त कर।

कर्म योगी बन, कर्म में अधिकार है तेरा।
फल संकल्प नहीं है तेरा।

परमात्मा बस एक कृष्ण है,
हम सब हैं उसकी आत्मा।

वो अशरीर है, हम सशरीर हैं।
शरीर नशवर है, आत्मा अमर है।

जीवन है तो मृत्यु निशचित है,
मृत्यु है तो जन्म निशचित है,

इस बन्धन से मुक्ति मोक्ष है।

कृष्ण ने कहा

मेरा भक्त बन तू कर्म किये जा,
फल को तू मुझ पे छोड दे।

शरीर रथ है, इन्द्रियाँ घोडे,
मन चंचल है, बुद्धि मैं हूँ,

बुद्धि से मन वश में कर ले।
जितेन्द्रिय बन, मन को साध ले !

काम, क्रोध, मद, लोभ, त्याग दे,
माया, ममता, मोह, त्याग दे।

सत्य, अहिंसा को अपना ले,
दीन-दुखी को गले लगा ले।

तू अकर्ता, मैं हूँ कर्ता,
तू अपने कर्मों का भर्ता!

निर्लिप्त रह कर, संसार भोग ले।

न कुछ ले कर आया था तू,
ना ले कर कुछ जायेगा।

सत्कर्म करेगा, स्वर्ग मिलेगा,
दुष्कर्म से तू नर्क पायेगा।

निर्भय निडर हो,
धर्मानुसर सत्कर्म किए जा।

कुल धर्म समझ कर,
कुलीन वंश निर्माण किए जा।

पाप, पुन्य का भेद समझ ले,
आततायी नहीं, श्रेश्ठ पुरुष बन।

पर्यावरण दूषित ना हो,
धर्ती, आकाश का दोहन न हो।

जीव वनस्पति है ये जितने,
सारे संरक्षण में हैं ये तेरे।

धर्ती को तू स्वर्ग बना ले,
मानव धर्म सर्व श्रेष्ठ धर्म है,
पृथ्वी को धर्म क्षेत्र बना ले।

अगस्त 31,2010, मंगलवार वैशाली, गाज़ियाबाद 201010 उ.प्र.

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